सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफ़ोन आइडिया की वो याचिका ख़ारिज कर दी है जिसमें 2500 करोड़ रुपये सोमवार को और शुक्रवार तक 1000 करोड़ रुपये देने की पेशकश की गई थी.
कंपनी ने अपनी याचिका में ये मांग भी की थी कि उसके ख़िलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई न की जाए.
जस्टिस अरुण मिश्र की अगुवाई वाली बेंच ने वोडाफ़ोन आइडिया की तरफ़ से पैरवी कर रहे एडवोकेट मुकुल रोहतगी की दलीलें सोमवार को ख़ारिज कर दीं.
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफ़ोन आइडिया को किसी किस्म की राहत देने से इनकार कर दिया था.
ये रक़म भले ही सरकारी राजस्व में अतिरिक्त कमाई के तौर पर दर्ज होगी पर ये माना जा रहा है कि पूरे टेलीकॉम उद्योग को इससे बड़ा झटका लगने वाला है.
टेलीकॉम सेक्टर
भारत भले ही दुनिया के सबसे बड़े टेलीकॉम बाजारों में शुमार होता है लेकिन इसके प्रमुख खिलाड़ी हाल के समय में बुरे दौर से गुजर रहे हैं.
टेलिकॉम कंपनियों को 13 अरब डॉलर की रकम सरकार को चुकानी है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च तक की मियाद तय की है.
कोर्ट ने कंपनियों से ये भी पूछा है कि वक़्त पर पैसा न चुकाने के लिए टेलिकॉम कंपनियों पर क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए?
देश की सबसे बड़ी अदालत के फ़ैसले ने उनकी चिंताएं और बढ़ा दी हैं.
देश की बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में से एक वोडाफ़ोन आइडिया के लिए ये फ़ैसला उनके मुश्किल वक़्त में आया है.
वोडाफ़ोन आइडिया का घाटा :
पिछले हफ़्ते ही कंपनी ने 6453 करोड़ रुपये के तिमाही घाटा दर्ज किया था. पिछले साल इसी अवधि में ये घाटा 4998 करोड़ रुपये का था.
हालात की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कंपनी के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला ने आधिकारिक रूप से ये कहा कि अगर सरकार या कोर्ट से मदद नहीं मिली तो कंपनी को अपना कारोबार बंद करना होगा.
वोडाफ़ोन आइडिया और उसकी प्रतिस्पर्धी कंपनी एयरटेल ये पैसा चुकाने के लिए ऐसे वक़्त में और मोहलत मांग रहे हैं जब वे गिरे हुए कॉल और डेटा रेट और बढ़ते कर्ज़ के भार से दबे हुए हैं.
17 मार्च की मियाद और सरकार की तरफ़ किसी पहल के न होने की सूरत में ये सवाल उठने लगा है कि क्या ये वोडाफ़ोन के भारत में कारोबार ख़त्म होने की शुरुआत है?
ब्रितानी कंपनी वोडाफ़ोन भारत के टेलीकॉम बाज़ार की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी कंपनियों में से एक है. अगर कंपनी भारत में अपना कारोबार समेटती है तो इसका असर ग़ैरमामूली होगा. आख़िरकार कंपनी के पास 30 करोड़ से ज़्यादा उपभोक्ता हैं और वो हज़ारों लोगों को रोज़गार देती है.
साथ ही कंपनी पर ताला लगने का नकारात्मक असर पूरे टेलीकॉम बाज़ार पर होने की संभावना है.
अगर कंपनी पर ताला लगा तो...
अगर वोडाफोन आइडिया भारतीय बाज़ार में कोराबार समेटने का फ़ैसला करते हैं तो इसका नतीजा ये होगा कि टेलीकॉम सेक्टर में केवल दो ही कंपनियां रह जाएंगी और वो होंगी रिलायंस जियो और एयरटेल.
और भारती एयरटेल की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. पिछली तिमाही में कंपनी ने 3 अरब डॉलर का घाटा दर्ज़ किया था और उसे सरकार को तकरीबन 5 अरब डॉलर की रकम चुकानी है.
टेलीकॉम बाज़ार की सबसे नई खिलाड़ी रिलायंस जियो के लिए ये फीलगुड वाली स्थिति है. बहुत से लोग टेलीकॉम बाज़ार की इस बदली हुई स्थिति के लिए रिलायंस जियो को ही जिम्मेदार मानते हैं.
तीन साल पहले जियो ने टेलीकॉम बाज़ार में कदम रखते ही मोबाइल इंटरनेट की दरें इस कदर कम कर दी थीं कि कॉल मार्केट डेटा मार्केट में बदल गया. इसके साथ ही भारत दुनिया में सबसे सस्ती दरों पर मोबाइल इंटरनेट सर्विस देने वाला देश बन गया. लेकिन वोडाफोन आइडिया और एयरटेल का बिज़नेस मॉडल बिखर कर रह गया.
इसके बाद से दोनों ही कंपनियों ने लाखों उपभोक्ता गंवाएं हैं. दोनों कंपनियों का संयुक्त घाटा 10 अरब डॉलर से ज़्यादा हो गया है और अब उन्हें अगले महीने तक सरकार को एक बड़ी रकम चुकानी है.
सबसे ज़्यादा फ़ायदा किसे?
साल 2019 तक रिलायंस जियो के पास 35 करोड़ उपभोक्ता थे. माना जा रहा है कि वोडाफ़ोन आइडिया की तालाबंदी से जियो को ही सबसे ज़्यादा फ़ायदा होने वाला है.
टेलीकॉम मार्केट के जानकारों का अनुमान है कि साल 2022 तक जियो अपना मुनाफ़ा दोगुणा कर लेगी और तब तक कंपनी के उपभोक्ताओं की संख्या भी 50 करोड़ पार कर जाएगी.
लेकिन पैसों को लेकर संवेदनशील माने जाने वाले भारतीय उपभोक्ताओं के लिए इसका क्या मतलब है? संभवतः ये बहुत अच्छी ख़बर नहीं है. वोडाफ़ोन आइडिया और एयरटेल को हुए बड़े घाटे की वजह से तीनों ही कंपनियों ने अपनी दरें बढ़ा दी हैं.
अर्थशास्त्री विवेक कॉल कहते हैं, "क़ीमतों का बढ़ना अपने आप में कोई बुरी चीज़ नहीं है. हक़ीक़त में ये अच्छी चीज़ होने वाली है क्योंकि बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने का यही एकमात्र तरीका है. भारत में टेलीकॉम मार्केट के बचने और फलने-फूलने के लिए ऐसा होना ज़रूरी है."
लेकिन अगर ऐसा हुआ तो क्या भारत के बड़े टेलीकॉम बाज़ार के विकास में इससे सुस्ती आ सकती है? इस सवाल के जवाब के लिए अभी इंतज़ार करना होगा.
लड़ाई किस बात की?
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू को लेकर टेलीकॉम कंपनियों और भारत सरकार के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है.
आम आदमी की भाषा में कहें तो टेलीकॉम कंपनियों जो पैसा कमा रही हैं, उनका एक हिस्सा उन्हें टेलीकॉम विभाग को देना है. यही एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू या एजीआर है.
साल 2005 से ही एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की परिभाषा को लेकर सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच मतभेद हैं.
कंपनियां चाहती हैं कि केवल टेलीकॉम बिज़नेस से होने वाली कमाई को ही इस उद्देश्य के लिए गिना जाए लेकिन सरकार इसे बड़े दायरे में देखती है.
सरकार का कहना है कि ग़ैर टेलीकॉम बिज़नेस जैसे परिसंपत्तियों की बिक्री या डिपाजिट्स पर मिलने वाले ब्याज़ को भी इसमें गिना जाए.
लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और इसका मतलब ये हुआ कि टेलीकॉम कंपनियों को अब सरकार को 12.5 अरब डॉलर देने होंगे.