यूं जीतकर भी हार सकती है सरकार

केंद्र सरकार के बकाया AGR के भुगतान को लेकर सुप्रीम कोर्ट से वक्त न मिलने के बाद अब वोडाफोन आइडिया के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। सरकार के टेलीकॉम विभाग के मुताबिक कंपनी पर 53,000 करोड़ रुपये बकाया है, जबकि कंपनी का कहना है कि उस पर 18,000 से 23,000 करोड़ रुपये तक ही बाकी हैं। सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद अब एक चर्चा वोडाफोन आइडिया के ऑपरेशन बंद करने की है। यदि ऐसा हुआ तो यह खुद कंपनी, टेलीकॉम सेक्टर के लिए ही नहीं बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी घातक होगा। 


आइए जानते हैं, वोडाफोन के कारोबार समेटने का किस पर हो सकता है क्या असर


कहा जा रहा है कि कंपनी दिवालिया कानून के तहत आवेदन कर सकती है। बीते सप्ताह वोडाफोन आइडिया में 45 पर्सेंट की हिस्सेदारी रखने वाली ब्रिटिश कंपनी वोडाफोन के सीईओ निक रीड ने भी कहा था कि भारत में स्थिति गंभीर है। यदि कंपनी भारत में अपने ऑपरेशन को बंद करने का फैसला लेती है तो फिर उसके चौतरफा नुकसान होंगे।


NPA से जूझ रहे बैंकों का संकट और बढ़ेगा: कंपनी के बंद होने पर पहले ही एनपीए के संकट से जूझ रहे देश के बैंकों को एक और करारा झटका लग सकता है। वोडाफोन आइडिया पर भारतीय बैंकों का 25,000 करोड़ रुपये बकाया है। ऐसे में कंपनी डूबी तो बैंकों की यह रकम भी फंस जाएगी। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के मुताबिक कुल 1.2 खरब रुपये के कर्ज में डूबी कंपनी के बंद होने से रोजगार का भी बड़ा संकट पैदा हो सकता है।


सीधे तौर पर बेरोजगार होंगे 13,500 लोग: वोडफोन आइडिया के फिलहाल भारत में प्रत्यक्ष तौर पर 13,500 कर्मचारी हैं। इसके अलावा तमाम वेंडर और अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोग भी हैं, जिनके रोजगार पर कंपनी के बंद होने से संकट होगा। पहले से ही रोजगार की कमी के सवाल से जूझ रही सरकार के लिए भी यह चुनौती होगा।


…तो जीतकर भी हार जाएगी सरकार: भले ही सरकार एजीआर के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में वोडाफोन आइडिया के खिलाफ अपनी लड़ाई जीतती दिखी है, लेकिन यह जीत भी हार सरीखी ही है। वोडाफोन यदि अपने ऑपरेशन को समेटती है तो अर्थव्यवस्था पर जो असर होगा और रोजगार का जो संकट पैदा होगा, वह सरकार के लिए ही चिंता का सबब बनेगा।