डर का कारोबार

दुनिया भर में किसी आपदा या महामारी के समय अपेक्षा यही होती है कि बचे हुए लोग अपनी ओर से पीड़ितों को सहायता पहुंचाने की पेशकश करेंगे, हर संभव कोशिश करेंगे। एक मानवीय और सभ्य समाज की यही पहचान है और कसौटी भी। यों प्राकृतिक आपदाओं से लेकर महामारी फैलने के अनेक मौकों पर ऐसे तमाम उदाहरण सामने आते रहे हैं जब किसी देश ने प्रभावित इलाकों के पीड़ितों की बढ़-चढ़ कर आर्थिक और अन्य तरह से मदद की। लेकिन किसी विपदा के समय अगर जरूरी सामानों के कृत्रिम अभाव या फिर कालाबाजारी की खबरें आती हैं तो यह सोच कर बेहद निराशा होती है कि हम एक मानवीय समाज के रूप में कितने विकसित हो सके हैं।


क्या कोई त्रासदी किसी के लिए अकूत मुनाफा कमाने का मौका हो सकती है? यह पहली नजर में ही एक बेहद संवेदनहीन और आपराधिक प्रवृत्ति लगती है। अफसोस की बात यह है कि एक ओर दुनिया भर में कोरोना वायरस की मार से बहुत सारे लोगों की मौत हो चुकी है, यह तेजी से दूसरे देशों की ओर फैल रहा है, लेकिन ऐसे समय में भी कुछ लोग इससे बचाव के साधनों की जमाखोरी या कालाबाजारी जैसे काम में लगे हुए हैं!


गौरतलब है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए मुंह और नाक पर मास्क लगाने और हाथों पर सैनिटाइजर लगाने को एक प्राथमिक उपाय बताया गया है। जैसे-जैसे सरकार और दूसरी एजेंसियों की ओर से खुद को सुरक्षित रखने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों का प्रसार हुआ है, वैसे-वैसे लोगों के बीच ये दोनों संसाधन खरीदने की एक तरह से होड़ मच चुकी है। लेकिन देश के कई इलाकों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि बाजार में कहीं मास्क और सैनिटाइजर की भारी कमी है तो कहीं इन चीजों की जमाखोरी की जा रही है।


ज्यादा अफसोसनाक यह है कि कहीं-कहीं कृत्रिम कमी दर्शा कर और कोरोना वायरस के असर को खौफ के रूप में प्रचारित कर मास्क और सैनिटाइजर की कालाबाजारी की खबरें भी आ रही हैं। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के संभल जिले में सर्जिकल मास्क बता कर साधारण कपड़े से बने मास्क बेचने और कमाई करने का मामला पकड़ में आया है।


अक्सर ऐसे दृश्य सामने दिख भी जाते हैं जब किसी मुसीबत में पड़े व्यक्ति या परिवार की मदद के लिए लोग बिना किसी अपेक्षा के अपनी ओर से बढ़ कर हर संभव मदद करते हैं। व्यापक स्तर पर देखें तो एक देश किसी आपदा के समय दूसरे देश की मदद करते हुए यह नहीं देखता कि वह उसका मित्र है या नहीं। सभ्य और मानवीय मूल्यों वाली दुनिया में यही स्वाभाविक और जरूरी है। लेकिन इसके बरक्स अगर कोई आपदा या महामारी के मारे लोगों से मुनाफा कमाने या उन्हें भ्रम में डालने के लिए अनैतिक और भ्रष्ट तरीके अपनाने की हद तक चला जाता है तो यह उसके सभ्य और संवेदनशील होने पर भी सवालिया निशान है।